लोकेशन -बडामलहरा (मध्यप्रदेश )
रिपोर्ट — अमित असाटी
बड़ामलहरा ।बुंदेलखंड आंचल प्राचीन समय से शाक्ति की उपासना एवं आराधना का प्रमुख केन्द्र रहा है यही वजह है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र मे देवी के अनेक सिद्ध क्षेत्र स्थापित है ।इन्हीं सिद्ध क्षेत्रों मे से एक है अवार माता मंदिर । सागर छत्तरपुर जिले की सीमा पर स्थित अबार माता का मंदिर अपने आप में बेहद अनूठा एवं सिद्ध पीठ स्थल है मंदिर का संबंध चदेल काल से बताया जा रहा है ।आल्हा उदल की आराध्य देवी एवं लोधी समाज की कुल देवी अवार माता के बारे मे ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि पर यहां आकर माता के दर्शन करने मात्र से सारे क्लेश दूर हो जाते हैं। अवार माता पर प्रति वर्ष जनपद पंचायत बड़ामलहरा द्वारा बैसाख पूर्णिमा पर बिशाल मेले का आयोजन करवाया जा रहा है जो प्राचीन समय से चला आ रहा है ।
अवार माता के प्राकट्य के बारे मे अनेक मान्यता है किन्तु एक सर्वमान्य मान्यता के अनुसार मंदिर का निर्माण चन्देल शासन काल मे बुन्देलखण्ड के आल्हा उदल ने करवाया था ।आल्हा उदल चदेंल शासक परमाल जू देव चदेंल के लड़ाका सरदार थे ।आल्हा उदल अपने पिता की मृत्यु का करिया राय से बदला लेने के माढ़ौ जाते समय इस जंगल में रुक रात को आल्हा को यहां किसी दिव्य शाक्ति के होने का अहसास हुआ उन्होंने शाक्ति का आव्हान कर प्रार्थना की कि युद्ध मे बिजय होने पर मठ बनवायेंगे ।पिता का बदला लेने के बाद जब आल्हा उदल वापस आये एवं उस स्थान की तलाश की तलाश के दौरान देवी प्रतिमा के मिलने पर बैसाख पूर्णिमा पर माता की प्रतिष्ठा पहाड़ पर मठ (मंदिर) बनवा कर मेले का शुभारंभ करवाया तभी से बैसाख पूर्णिमा पर मेले की परंपरा चली आ रही है । आवेरा यानि बिपति मे सहायता करने की वजह से माता अवार नाम से प्रसिद्ध हुई तथा आल्हा उदल अपनी अराध्य देवी के रुप मे पूजते रहे ।लोधी समाज भी माता को अपनी कुल देवी मानता है ।
बैसाख माह की पूर्णिमा पर लगने बाले बिशाल मेले मे बुन्देलखण्ड के अलावा राजस्थान एवं महाराष्ट्र के लोग भी दर्शन करने आते है । शरदीय नवरात्रि पर्व पर माता के दरबार मे आस्था का भारी जनसैलाब उमड़ रहा है ।
* मनौती के लिए मड़िया पर लगायें गये हल्दी के हाथे देते है सकेत *
अवार माता मंदिर पर बलुई पत्थर का एक प्राचीन प्राकृतिक तकरीबन 42 फुट ऊंचा प्रस्तर स्तंभ है जिसे स्थानीय भाषा मे लोग चीरा कहते है इसका मूल फैला हुआ है जिस पर प्राचीन मठ था माता की प्रतिमा इसी चीरा पर टिकी हुई है जिसके बारे मे एक प्राचीन मान्यता पूर्व समय से प्रचलित है कि माता की मड़िया पर लगाये गये हल्दी के हाथे दूसरे दिन चीरा पर दिखाई देते है जो इस बात के सूचक है कि मनोकामना पूर्ण होगी मनोकामना पूर्ण होने पर यहां आकर हाथों को लौटाना पड़़ता है ।विशेषकर संतान प्राप्ति के लिए ।
