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आदिवासियों के जुलूस में जबरन घुसे दबंग, टोका तो लहूलुहान हुए कई सहरिया, पुलिस बनी मूकदर्शक - NN81



मध्यप्रदेश शिवपुरी से नितिन राजपूत जिला ब्यूरो की रिपोर्ट

आदिवासियों के जुलूस में जबरन घुसे दबंग, टोका तो लहूलुहान हुए कई सहरिया, पुलिस बनी मूकदर्शक*

> एफआईआर की प्रति तक नहीं दी, मेडिकल आधा-अधूरा ,पीड़ितों ने पुलिस पर दबंगों को संरक्षण देने का लगाया आरोप

> सहरिया क्रांति ने घटना को बताया “आदिम युगीन अत्याचार”, बोली  अब न्याय सड़क पर मांगेंगे, 

शिवपुरी।

शिवपुरी जिले के मायापुर थाना क्षेत्र का यह किस्सा किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं  फर्क इतना है कि यहाँ नायक नहीं, शिकार हैं सहरिया आदिवासी, और खलनायक कोई गुंडे नहीं, बल्कि वो समाज है जो अब भी “जात” और “जोर” के नशे में चूर है। पूरा मामला आज तब सुर्खियों मे आया जब एक सेंकड़ा की संख्या मे पीढ़ित आदिवासी जिला मुख्यालय पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर अपनी शिकायत लेकर पहुंचे तो उनके चेहरे अत्याचार की कहानी खुद ब्याँ कर रहे थे 

यह है 1 अक्टूबर 2025 की रात की  जब एक आदिवासी गाँव के लोग माता का रास विसर्जन करने गए थे और लौटे तो लहूलुहान, टूटी हड्डियों और टूटी उम्मीदों के साथ।

पुलिस अधीक्षक को सौंपे आवेदन के अनुसार मायापुर थाना अंतर्गत आने वाले गाँव कंचनपूरा गाँव के सहरिया समाज द्वारा नवरात्रि मे माता की प्रतिमा की स्थापना की थी 1 अक्तूबर को रात्री को देवी विसर्जन के लिए तालाब के लिए निकले । ढोल-मांदल की थाप पर महिलाएँ गीत गा रही थीं। व्रत रखने वाले लोग नाचते जा रहे थे उसी दौरान गाँव के ही कुछ दबंग युवक इंदरवीर, शिवराय, अटू, गोपाल, रामवीर, बंटी, मोनू, मंगलसिंह और नरेश  शराब के नशे में वहाँ पहुँचे।

देखते ही देखते उनका रुख भक्तिभाव से बदतमीज़ी की ओर मुड़ गया। वे तालाब किनारे जाकर उनके जलूस मे घुसकर जबरदस्ती डांस करने लगे। जब सहरिया युवकों ने विरोध किया और कहा की हमारी बहन बेटियाँ भी यहाँ हैं आप लोग ये हरकत न करो , तो गालियाँ बरसीं जातिसूचक, अश्लील और अपमानजनक शब्दों की बारिश की गई 

पीड़ित बाबू आदिवासी बताते हैं  हमने कहा भाई, माँ का कार्यक्रम है, घर की औरतें हैं, सम्मान रखो। इतने में उन लोगों ने माँ-बहन की गालियाँ देना शुरू कर दीं। हमने विरोध किया तो बोले ‘तुम्हारी औकात क्या है बोलने की?  फिर सब ने मिलकर लाठियाँ चलाईं। कोई लात से मारा, कोई पत्थर फेंकने लगा।

सहरिया समाज के दर्जनों लोग घायल हो गए। बच्चों और महिलाओं ने भागकर किसी तरह जान बचाई।

रात के हमले के बाद पीड़ित मायापुर थाना पहुँचे। लेकिन वहाँ जो हुआ, उसने उन्हें और तोड़ दिया।

थाने में वे आरोपी पहले से मौजूद थे। बक़ौल विनोद आदिवासी पुलिसकर्मियों के सामने उन्होंने फिर से धमकाया व मारपीट की और बोले  शिकायत की तो जान से खत्म कर देंगे।

आवेदन के अनुसार  पीड़ितों ने जब रिपोर्ट लिखवाने की बात की तो पुलिस ने केवल औपचारिक कार्यवाही की, लेकिन एफआईआर की प्रति नहीं दी। मेडिकल भी आधा-अधूरा कराया गया। जिनकी हालत गंभीर थी, उन्हें अस्पताल नहीं भेजा गया। कुछ घायलों के मेडिकल नहीं किए गए।

सहरिया क्रांति आंदोलन के संयोजक संजय बेचैन ने कहा  यह घटना कोई सामान्य झगड़ा नहीं, यह जातीय उत्पीड़न है। पुलिस दबंगों को संरक्षण दे रही है । एफआईआर की प्रति न देना, घायलों का मेडिकल न कराना और तीन दिन बाद भी रिपोर्ट रोकना और कोई गिरफ्तारी न करना  ये सब बताता है कि आदिवासी की शिकायत आज भी रद्दी की टोकरी में फेंक दी जाती है।”

सहरिया क्रांति के मोहर सिंह आदिवासी ने इस घटना को “आदिम युगीन अत्याचार” बताया है और कहा है कि लोकतंत्र के नाम पर अब भी आदिवासी को इंसाफ नहीं मिलता। सहरिया क्रांति ने पुलिस अधीक्षक से माँग की है कि सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए और दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हो।

पीड़ितों ने चेतावनी दी है कि यदि उन्हें न्याय नहीं मिला तो वे सामूहिक रूप से मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलने भोपाल जाएंगे।

ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में बाबू, विनोद, गोपाल, शंकर, भैयालाल हकके ,राजकुमार , बल्लू, प्रहलाद,गुलाबसिंह सहित 15 से अधिक आदिवासी शामिल हैं।

घटना के चार दिन बीत चुके हैं, लेकिन दबंग गाँव में खुले घूम रहे हैं। सहरिया परिवार अब अपने ही घरों में बंद हैं। महिलाएँ रात को बाहर नहीं निकलतीं। बच्चे स्कूल जाने से डरते हैं।

इनका कहना है – 

झगड़े  की सूचना मिली थी , हमने कुछ लोगों का मेडिकल भी कराया है , लेकिन दशहरा पर्व मे व्यस्त्त रहने के कारण मामला कायम नहीं हुआ जिसे हम फरियादी के आते ही कायम करेंगे , पुलिस मामले मे आरोपियों के साथ कानून सम्मत कार्यवाही करेगी -  नीतू सिंह ,थाना प्रभारी मायापुर

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