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गोंड समाज 84परगना गायता जोहारनीः परंपरा और एकता का अद्भुत संगम - NN81



लोकेशन नारायणपुर छत्तीसगढ़ 

संवाददाता खुमेश यादव 

नारायणपुर। जिले के ग्राम छोटेडोंगर में गोंड समाज 84 परगना छोटेडोंगर के अंतर्गत आने वाले 18 गाँवों के गायताओं का सम्मान करते हुए परगना स्तरीय गायता जोहारनी कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया।


इस अवसर पर बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के महिला-पुरुष, बुजुर्ग, युवा वर्ग और बच्चे शामिल हुए। पारंपरिक नृत्य-गान, सांस्कृतिक रस्म अदायगी और सामुदायिक एकजुटता के इस अद्भुत आयोजन ने आदिवासी संस्कृति की झलक को जीवंत कर दिया।


पूनांग पंडुम और गायता जोहरनी का महत्व


आदिवासी परंपरा में पूनांग पण्डुम प्रमुख त्योहार माना जाता है। इसमें अपने द्वारा उगाई गई नई फसल को सबसे पहले अपने इष्ट पेन पुरखों को अर्पित किया जाता है। इसके बाद परिवार के सदस्य सामूहिक रूप से नए अनाज से बने भोजन को 'लाकॉज' के रूप में ग्रहण करते हैं। पूनांग पण्डुम के दूसरे दिन गायता जोहारनी की रस्म अदा की जाती है। सभी ग्रामवासी अपने गाँव के गायता के घर एकत्रित होकर पूजा-अर्चना और मंगलकामना करते हैं। यह परंपरा बस्तर अंचल के आदिवासियों में सदियों से चली आ रही है।


गाँव का गायता, दरअसल वह परिवार होता है जिसने सबसे पहले गाँव को बसाया। इस परिवार को ही गायता की पदवी प्राप्त होती है। गायता का कार्य पूरे गाँव के कुशल मंगल की कामना करना, पेन पण्डुमों में पूजा-पाठ करना और सामाजिक परंपराओं का निर्वहन करना होता है। गाँव में एकता, भाईचारा और शांति बनाए रखने में गायता की अहम भूमिका रहती है। ग्रामीण उनके निर्णयों और निर्देशों का सम्मान करते हैं। बदलते परिवेश में अब यह परंपरा केवल गाँव स्तर तक सीमित नहीं रही। इसे परगना स्तर पर भी मनाने की पहल की जा रही है, ताकि समाज की एकता और संस्कृति की मजबूती बनी रहे। इसी कड़ी में इस वर्ष गोंड समाज 84 परगना छोटेडोंगर  में गायता जोहारनी का आयोजन किया गया। समुदाय की युवतियों ने परंपरा के अनुसार चावल, कोयला और टोरा तेल का पेस्ट तैयार कर गायताओं और अन्य उपस्थित समुदाय के लोगों का श्रृंगार किया। सिहाड़ी पत्ते के डंठल से यह रस्म पूरी की गई, जिसे गोंडी भाषा में 'डुमकंग कोटाना' कहा जाता है। इसके बाद परगना मांझी और 18 गाँवों के गायताओं का सफेद पगड़ी और हल्दी चावल का टीका लगाकर सामूहिक सम्मान किया गया आदिवासी समाज का मानना है कि इस तरह के आयोजन से न केवल परंपरा जीवित रहती है बल्कि युवाओं में भी अपनी संस्कृति और जड़ों के प्रति गर्व की भावना जागृत होती है। इसमें सामुदायिक बंधन, आपसी एकजुटता और सेवा-भाव का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया गया। इस कार्यक्रम के संबंध सोनसिंह  कोरार्म  अध्यक्ष गोंड समाज 84 परगना छोटेडोंगर ने कहा की गायता जोहारनी केवल एक रस्म नहीं बल्कि यह समाज को एक सूत्र में बाँधने का माध्यम है। इसे परगना स्तर पर मनाना हम सबके लिए गर्व की बात है। रैमा मंडावी, कर्मचारी प्रकोष्ठ उपाध्यक्ष, छोटेडोंगर ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने जो परंपराएं दी हैं, वह हमारी पहचान हैं। आज का आयोजन इस बात का प्रमाण है कि हम अपनी संस्कृति को सहेजकर आने वाली पीदियों तक पहुंचाएंगे।


ग्राम छोटेडोंगर में आयोजित यह परगना स्तरीय गायता जोहारनी न केवल एक धार्मिक-सामाजिक आयोजन था, बल्कि यह आदिवासी समाज की एकता, संस्कृति और परंपरा की निरंतरता का प्रतीक भी बना। परंपराओं के इस संरक्षण से आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने और सामाजिक बंधन को मजबूत बनाने की प्रेरणा मिलेगी।

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