“सत्य” — एक दार्शनिक विश्लेषण
लेखक : राहुल सिलाडिया
स्रोत : विविध आलोचनात्मक चिंतन (Critical Thinking) पर आधारित अध्ययन।
सत्य : मानव जीवन का शाश्वत लक्ष्य
सत्य इस जगत में सबसे अधिक दुर्लभ और बहुमूल्य उपलब्धि है। आदि काल से मनुष्य सत्य को जानने की जिज्ञासा रखता आया है। परंतु आज के युग में हर व्यक्ति, हर संस्था, हर विचारधारा अपने को सत्य का वाहक बताती है—मीडिया, धर्मग्रंथ, अध्यात्म, राजनीति, यहाँ तक कि विज्ञान तक।
प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुभव, विश्वास, विचारधारा या दृष्टिकोण को ही सत्य मान लेता है।
महात्मा गांधी ने कहा था— “सत्य ही ईश्वर है।”
हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे अंकित है— “सत्यमेव जयते।”
ऋग्वेद में लिखा है— “एकं सत्यम् विप्रा बहुधा वदन्ति” अर्थात् सत्य एक ही है, पर विद्वान उसे अनेक रूपों में कहते हैं।
सत्य की परिभाषा
सत्य वह है जिसमें न कुछ घटाया जा सके, न कुछ बढ़ाया जा सके — अर्थात् जो केवल यथार्थ को ही प्रकट करे।
सत्य के बिना यथार्थ का ज्ञान असंभव है।
सत्य सदैव एक होता है; असत्य के अनेक रूप हो सकते हैं।
गणित इसका स्पष्ट उदाहरण है—किसी प्रश्न का केवल एक सही उत्तर होता है, जबकि गलत उत्तर अनेक हो सकते हैं।
सत्य और संघर्ष
इतिहास साक्षी है कि शीत युद्ध (Cold War) के समय साम्यवादी, फासीवादी, पूँजीवादी और साम्राज्यवादी विचारधाराएँ — सब अपने को सत्य मानती रहीं। परिणामस्वरूप करोड़ों निर्दोष जनों की मृत्यु हुई। यह भी एक प्रकार का ऐतिहासिक सत्य है।
क्या यह सब सत्य की खोज थी या सत्य के नाम पर वर्चस्व की होड़?
शास्त्रों में लिखा है—“सत्यमेव जयते”, परंतु व्यवहार में हमें झूठ को जीतते देखा जाता है।
किन्तु सत्य की अंतिम विजय इसलिए होती है क्योंकि असत्य, सत्य का ही आवरण ओढ़े रहता है। जब तक असत्य का आवरण नहीं हटता, हम उसे सत्य समझ बैठते हैं। किंतु एक बार जब वास्तविक सत्य उद्घाटित होता है, तब कोई उसे नकार नहीं सकता।
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उदाहरण : सूर्यग्रहण का सत्य
हर संस्कृति ने सूर्यग्रहण की अपनी व्याख्या की।
भारतीय ग्रंथों में राहु-केतु का उल्लेख है।
अन्य देशों ने भी अपने-अपने कारण बताए।
परंतु आधुनिक विज्ञान ने यह स्पष्ट किया कि सूर्यग्रहण पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की गति से संबंधित एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है।
यहाँ सत्य की विजय प्रत्यक्ष दिखाई देती है।
सत्य को पहचानने की कठिनाइयाँ
मानव मस्तिष्क कई प्रकार के पूर्वाग्रहों (Biases) से ग्रस्त रहता है, जैसे—
जीवित बचाव पूर्वाग्रह (Survivorship Bias)
पुष्टिकरण पूर्वाग्रह (Confirmation Bias)
भावनात्मक पूर्वाग्रह (Emotional Bias)
प्राधिकार पूर्वाग्रह (Authority Bias)
आंशिक साक्ष्य पूर्वाग्रह (Total Evidence Bias)
इन्हीं कारणों से मनुष्य अनेक बार असत्य को सत्य मान बैठता है।
कोई व्यक्ति जान-बूझकर झूठ नहीं मानता; वह केवल अपने मस्तिष्क के भ्रम का शिकार होता है।
सत्य के चार प्रकार
1. वस्तुनिष्ठ सत्य (Objective Truth)
वह सत्य जो प्रयोग, गणित या तर्क से प्रमाणित हो सके।
उदाहरण:
जल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बना है।
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।
2 + 2 = 4।
2. व्यक्तिनिष्ठ सत्य (Subjective Truth)
वह सत्य जो व्यक्ति के अनुभव, भावनाओं और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
उदाहरण:
गरीब के लिए ₹100 का मूल्य अधिक है, अमीर के लिए नहीं।
एक चित्र किसी को सुंदर लगे, किसी को साधारण।
एक परीक्षा-परिणाम किसी के लिए सफलता, किसी के लिए असफलता।
3. मान्यतामूलक सत्य (Normative Truth)
वह सत्य जिसे समाज सामूहिक रूप से स्वीकार करता है—धर्म, परंपरा, कानून या सामाजिक नियमों के आधार पर।
उदाहरण:
भारत में बाईं ओर चलना, अमेरिका में दाईं ओर।
मुसलमानों में शराब हराम है, अन्यत्र स्वीकृत।
न्यायालयीन निर्णय भी इसी श्रेणी में आते हैं—
अधीन न्यायालय दोष सिद्ध करे, उच्च न्यायालय निर्दोष ठहराए, और सर्वोच्च न्यायालय पुनः दोष सिद्ध करे—
जितना उच्च न्यायालय, उतना निर्णय सत्य के समीप।
4. सार्वभौमिक सत्य (Universal Truth)
वह सत्य जो संपूर्ण मानवता और ब्रह्मांड पर समान रूप से लागू हो।
उदाहरण:
मानव अधिकार सर्वत्र समान हैं।
हिंसा सर्वत्र अनुचित मानी जाती है।
सूर्य पूर्व से उगता है और पश्चिम में अस्त होता है।
गुरुत्वाकर्षण का नियम हर स्थान पर समान रूप से प्रभावी है।
निष्कर्ष
अंततः, सत्य वही है जिसे घटाया या बढ़ाया न जा सके—जो स्पष्ट यथार्थ का प्रतिबिंब हो।
मेरे विचार में विज्ञान आज भी सत्य के सर्वाधिक समीप है, क्योंकि वह न विश्वास पर, न परंपरा पर, बल्कि परीक्षण, तर्क और प्रमाण पर आधारित है।
सत्य की खोज ही मानव जीवन की सबसे महान साधना है।
